शिव अमृतवाणी Shiv Amritwani Lyrics

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"Shiv Amritwani" Song Details:

Album/Label: Shiv Amritwani
Singer(s):Anuradha Paudwal
Lyricist(s):Balbir Nirdosh
Composer(s):Surender Kohli
Music Director(s):Surender Kohli
Genre(s):Chalisa
Music Label:© T-Series Bhakti Sagar
Starring:Anuradha Paudwal

Shiv Amritwani Lyrics – Anuradha Paudwal

कल्पतरु पुण्यात्मा प्रेम सुधा शिव नाम
हितकारक संजीवनी शिव चिंतन अविराम
पतिक पावन जैसे मधुर शिव रसना के घोल
भक्ति के हंसा ही चुगे मोती ये अनमोल
जैसे तनिक सुहागा सोने को चमकाए
शिव सुमिरन से आत्मा अध्भुत निखरी जाये
जैसे चंदन वृक्ष को दस्ते नहीं है नाग
शिव भक्तो के चोले को कभी लगे न दाग
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

दया निधि भूतेश्वर शिव है चतुर सुजान
कण कण भीतर है बसे नील कंठ भगवान
चंद्र चूड के त्रिनेत्रा उमा पति विश्वास
शरणागत के ये सदा काटे सकल क्लेश
शिव द्वारे प्रपंच का चल नहीं सकता खेल
आग और पानी का जैसे होता नहीं है मेल
भय भंजन नटराज है डमरू वाले नाथ
शिव का वंधन जो करे शिव है उनके साथ
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

लाखो अश्वमेध हो सो गंगा स्नान
उनसे उत्तम है कही शिव चरणों का ध्यान
अलख निरंजन नाद से उपजे आत्मा ज्ञान
भटके को रास्ता मिले मुश्किल हो आसान
अमर गुणों की खान है चित शुद्धि शिव जाप
सत-संगत में बैठ कर करलो पश्चाताप
लिंगेश्वर के मनन से सिद्ध हो जाते काज
नमः शिवाय रटता जा शिव रखेंगे लाज
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

शिव चरणों को छूने से तन मन पावन होये
शिव के रूप अनूप की समता करे न कोई
महाबलि महादेव है महाप्रभु महाकाल
असुरनिकंदन भक्त की पीड़ा हरे तत्काल
शर्व व्यापी शिव भोला धर्म रूप सुख काज
अमर अनंता भगवंता जग के पालन हार
शिव करता संसार के शिव सृष्टि के मूल
रोम रोम शिव रमने दो शिव न जईओ भूल
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

शिवअमृत की पावन धारा धो देती हर कष्ट हमारा
शिव का काज सदा सुखदायी शिव के बिन है कौन सहायी

शिव की निसदिन की जो भक्ति देंगे शिव हर भय से मुक्ति
माथे धरो शिव नाम की धुली टूट जायेगी यम कि सूली

शिव का साधक दुःख ना माने शिव को हरपल सम्मुख जाने
सौंप दी जिसने शिव को डोर लूटे ना उसको पांचो चोर

शिव सागर में जो जन डूबे संकट से वो हंस के जूझे
शिव है जिनके संगीसाथी उन्हें ना विपदा कभी सताती

शिव भक्तन का पकडे हाथ शिव संतन के सदा ही साथ
शिव ने है ब्रह्मांड रचाया तीनो लोक है शिव कि माया

जिन पे शिव की करुणा होती वो कंकड़ बन जाते मोती
शिव संग तान प्रेम की जोड़ो शिव के चरण कभी ना छोडो

शिव में मनवा मन को रंग ले शिव मस्तक की रेखा बदले
शिव हर जन की नस-नस जाने बुरा भला वे सब पहचाने

अजर अमर है शिव अविनाशी शिव पूजन से कटे चौरासी
यहाँ वहाँ शिव सर्व व्यापक शिव की दया के बनिये याचक

शिव को दीजो सच्ची निष्ठां होने न देना शिव को रुष्टा
शिव है श्रद्धा के ही भूखे भोग लगे चाहे रूखे-सूखे

भावना शिव को बस में करती प्रीत से ही तो प्रीत है बढ़ती
शिव कहते है मन से जागो प्रेम करो अभिमान त्यागो

दोहा :

दुनिया का मोह त्याग के शिव में रहिये लीन
सुख-दुःख हानि-लाभ तो शिव के ही है अधीन

भस्म रमैया पार्वती वल्ल्भ शिव फलदायक शिव है दुर्लभ
महा कौतुकी है शिव शंकर त्रिशूल धारी शिव अभयंकर

शिव की रचना धरती अंबर देवो के स्वामी शिव है दिगंबर
काल दहन शिव रूण्डन पोषित होने न देते धर्म को दूषित

दुर्गापति शिव गिरिजानाथ देते है सुखों की प्रभात
सृष्टिकर्ता त्रिपुरधारी शिव की महिमा कही ना जाती

दिव्या तेज के रवि है शंकर पूजे हम सब तभी है शंकर
शिव सम और कोई और ना दानी शिव की भक्ति है कल्याणी

कहते मुनिवर गुणी स्थानी शिव की बातें शिव ही जाने
भक्तों का है शिव प्रिय हलाहल नेकी का रस बाटँते हर पल

सबके मनोरथ सिद्ध कर देते सबकी चिंता शिव हर लेते
बम भोला अवधूत स्वरूपा शिव दर्शन है अति अनुपा

अनुकंपा का शिव है झरना हरने वाले सबकी तृष्णा
भूतो के अधिपति है शंकर निर्मल मन शुभ मति है शंकर

काम के शत्रु विष के नाशक शिव महायोगी भय विनाशक
रूद्र रूप शिव महातेजस्वी शिव के जैसा कौन तपस्वी

हिमगिरी पर्वत शिव का डेरा शिव सम्मुख ना टिके अंधेरा
लाखों सूरज की शिव ज्योति शस्त्रों में शिव उपमान होती

शिव है जग के सिरजन हारे बंधु सखा शिव इष्ट हमारे
गौ ब्राह्मण के वे हितकारी कोई न शिव सा पर उपकारी

दोहा :

शिव करुणा के स्रोत है शिव से करियो प्रीत
शिव ही परम पुनीत है शिव साचे मन मीत

शिव सर्पो के भूषणधारी पाप के भक्षण शिव त्रिपुरारी
जटाजूट शिव चंद्रशेखर विश्व के रक्षक कला कलेश्वर

शिव की वंदना करने वाला धन वैभव पा जाये निराला
कष्ट निवारक शिव की पूजा शिव सा दयालु और ना दूजा

पंचमुखी जब रूप दिखावे दानव दल में भय छा जावे
डम-डम डमरू जब भी बोले चोर निशाचर का मन डोले

घोट-घाट जब भंग चढ़ावे क्या है लीला समझ ना आवे
शिव है योगी शिव सन्यासी शिव ही है कैलास के वासी

शिव का दास सदा निर्भीक शिव के धाम बड़े रमणीक
शिव भृकुटि से भैरव जन्मे शिव की मूरत राखो मन में

शिव का अर्चन मंगलकारी मुक्ति साधन भव भयहारी
भक्त वत्सल दीन द्याला ज्ञान सुधा है शिव कृपाला

शिव नाम की नौका है न्यारी जिसने सबकी चिंता टारी
जीवन सिंधु सहज जो तरना शिव का हरपल नाम सुमिरना

तारकासुर को मारने वाले शिव है भक्तो के रखवाले
शिव की लीला के गुण गाना शिव को भूल के ना बिसराना

अंधकासुर से देव बचाये शिव ने अद्भुत खेल दिखाये
शिव चरणो से लिपटे रहिये मुख से शिव शिव जय शिव कहिये

भस्मासुर को वर दे डाला शिव है कैसा भोला भाला
शिव तीर्थो का दर्शन कीजो मन चाहे वर शिव से लीजो

दोहा :

शिव शंकर के जाप से मिट जाते सब रोग
शिव का अनुग्रह होते ही पीड़ा ना देते शोक

ब्र्हमा विष्णु शिव अनुगामी व है दीन हीन के स्वामी
निर्बल के बलरूप है शंभु प्यासे को जलरूप है शंभु

रावण शिव का भक्त निराला शिव को दी दश शीश कि माला
गर्व से जब कैलाश उठाया शिव ने अंगूठे से था दबाया

दुःख निवारण नाम है शिव का रत्न है वो बिन दाम शिव का
शिव है सबके भाग्यविधाता शिव का सुमिरन है फलदाता

शिव दधीचि के भगवंता शिव की तरी अमर अनंता
शिव का सेवादार सुदर्शन सांसे कर दी शिव को अर्पण

महादेव शिव औघड़दानी बायें अंग में सजे भवानी
शिव शक्ति का मेल निराला शिव का हर एक खेल निराला

शंभर नामी भक्त को तारा चंद्रसेन का शोक निवारा
पिंगला ने जब शिव को ध्याया देह छूटा और मोक्ष पाया

गोकर्ण की चन चूका अनारी भव सागर से पार उतारी
अनसुईया ने किया आराधन टूटे चिन्ता के सब बंधन

बेल पत्तो से पूजा करे चण्डाली शिव की अनुकम्पा हुई निराली
मार्कण्डेय की भक्ति है शिव दुर्वासा की शक्ति है शिव

राम प्रभु ने शिव आराधा सेतु की हर टल गई बाधा
धनुषबाण था पाया शिव से बल का सागर तब आया शिव से

श्री कृष्ण ने जब था ध्याया दश पुत्रों का वर था पाया
हम सेवक तो स्वामी शिव है अनहद अन्तर्यामी शिव है

दोहा :

दीन दयालु शिव मेरे शिव के रहियो दास
घट घट की शिव जानते शिव पर रख विश्वास

परशुराम ने शिव गुण गाया कीन्हा तप और फरसा पाया
निर्गुण भी शिव शिव निराकार शिव है सृष्टि के आधार

शिव ही होते मूर्तिमान शिव ही करते जग कल्याण
शिव में व्यापक दुनिया सारी शिव की सिद्धि है भयहारी

शिव है बाहर शिव ही अन्दर शिव ही रचना सात समंदर
शिव है हर इक के मन के भीतर शिव है हर एक कण कण के भीतर

तन में बैठा शिव ही बोले दिल की धड़कन में शिव डोले
हम कठपुतली शिव ही नचाता नयनों को पर नजर ना आता

माटी के रंगदार खिलौने साँवल सुन्दर और सिलोने
शिव हो जोड़े शिव हो तोड़े शिव तो किसी को खुला ना छोड़े

आत्मा शिव परमात्मा शिव है दयाभाव धर्मात्मा शिव है
शिव ही दीपक शिव ही बाती शिव जो नहीं तो सब कुछ माटी

सब देवो में ज्येष्ठ शिव है सकल गुणो में श्रेष्ठ शिव है
जब ये तांडव करने लगता ब्रह्मांड सारा डरने लगता

तीसरा चक्षु जब जब खोले त्राहि त्राहि ये जग बोले
शिव को तुम प्रसन्न ही रखना आस्था लग्न बनाये रखना

विष्णु ने की शिव की पूजा कमल चढाऊँ मन में सुझा
एक कमल जो कम था पाया अपना सुंदर नयन चढ़ाया

साक्षात तब शिव थे आये कमल नयन विष्णु कहलाये
इन्द्रधनुष के रंगो में शिव संतो के सत्संगों में शिव

दोहा :

महाकाल के भक्त को मार ना सकता काल
द्वार खड़े यमराज को शिव है देते टाल

यज्ञ सूदन महा रौद्र शिव है आनंद मूर्ति नटवर शिव है
शिव ही है श्मशान निवासी शिव काटें मृत्युलोक की फांसी

व्याघ्र चरम कमर में सोहे शिव भक्तों के मन को मोहे
नंदी गण पर करे सवारी आदिनाथ शिव गंगाधारी

काल के भी तो काल है शंकर विषधारी जगपाल है शंकर
महासती के पति है शंकर दीन सखा शुभ मति है शंकर

लाखो शशि के सम मुख वाले भंग धतूरे के मतवाले
काल भैरव भूतो के स्वामी शिव से कांपे सब फलगामी

शिव है कपाली शिव भस्मांगी शिव की दया हर जीव ने मांगी
मंगलकर्ता मंगलहारी देव शिरोमणि महासुखकारी

जल तथा बिल्व करे जो अर्पण श्रद्धा भाव से करे समर्पण
शिव सदा उनकी करते रक्षा सत्यकर्म की देते शिक्षा

लिंग पर चंदन लेप जो करते उनके शिव भंडार हैं भरते
चोसठ योगनी शिव के बस में शिव है नहाते भक्ति रस में

वासुकि नाग कण्ठ की शोभा आशुतोष है शिव महादेवा
विश्वमूर्ति करुणानिधान महा मृत्युंजय शिव भगवान

शिव धारे रुद्राक्ष की माला नीलेश्वर शिव डमरू वाला
पाप का शोधक मुक्ति साधन शिव करते निर्दयी का मर्दन

दोहा :

शिव सुमरिन के नीर से धूल जाते है पाप
पवन चले शिव नाम की उड़ते दुख संताप

पंचाक्षर का मंत्र शिव है साक्षात सर्वेश्वर शिव है
शिव को नमन करे जग सारा शिव का है ये सकल पसारा

क्षीर सागर को मथने वाले रिद्धि सिध्धी सुख देने वाले
अहंकार के शिव है विनाशक धर्म-दीप ज्योति प्रकाशक

शिव बिछुवन के कुण्डलधारी शिव की माया सृष्टि सारी
महानंदा ने किया शिव चिंतन रुद्राक्ष माला किन्ही धारण

भवसिंधु से शिव ने तारा शिव अनुकंपा अपरम्पारा
त्रि-जगत के यश है शिवजी दिव्य तेज गौरीश है शिवजी

महाभार को सहने वाले वैर रहित दया करने वाले
गुण स्वरूप है शिव अनूपा अंबानाथ है शिव तपरूपा

शिव चण्डीश परम सुख ज्योति शिव करुणा के उज्ज्वल मोती
पुण्यात्मा शिव योगेश्वर महादयालु शिव शरणेश्वर

शिव चरणन पे मस्तक धरिये श्रद्धा भाव से अर्चन करिये
मन को शिवाला रूप बना लो रोम रोम में शिव को रमा लो

माथे जो भक्त धूल धरेंगे धन और धन से कोष भरेंगे
शिव का बाक भी बनना जावे शिव का दास परम पद पावे

दशों दिशाओं मे शिव दृष्टि सब पर शिव की कृपा दृष्टि
शिव को सदा ही सम्मुख जानो कण-कण बीच बसे ही मानो

शिव को सौंपो जीवन नैया शिव है संकट टाल खिवैया
अंजलि बाँध करे जो वंदन भय जंजाल के टूटे बन्धन

दोहा :

जिनकी रक्षा शिव करे मारे न उसको कोय
आग की नदिया से बचे बाल ना बांका होय

शिव दाता भोला भंडारी शिव कैलाशी कला बिहारी
सगुण ब्रह्म कल्याण कर्ता विघ्न विनाशक बाधा हर्ता

शिव स्वरूपिणी सृष्टि सारी शिव से पृथ्वी है उजियारी
गगनदीप भी माया शिव की कामधेनु है छाया शिव की

गंगा में शिव शिव मे गंगा शिव के तारे तुरत कुसंगा
शिव के कर में सजे त्रिशूला शिव के बिना ये जग निर्मूला

स्वर्णमयी शिव जटा निराली शिव शम्भू की छटा निराली
जो जन शिव की महिमा गाये शिव से फल मनवांछित पाये

शिव पग पंकज सवर्ग समाना शिव पाये जो तजे अभिमाना
शिव का भक्त ना दुःख मे डोलें शिव का जादू सिर चढ बोले

परमानंद अनंत स्वरूपा शिव की शरण पड़े सब कूपा
शिव की जपियो हर पल माला शिव की नजर मे तीनो क़ाला

अंतर घट मे इसे बसा लो दिव्य ज्योत से ज्योत मिला लो
नम: शिवाय जपे जो स्वासा पूरीं हो हर मन की आसा

दोहा :

परमपिता परमात्मा पूरण सच्चिदानंद
शिव के दर्शन से मिले सुखदायक आनंद

शिव से बेमुख कभी ना होना शिव सुमिरन के मोती पिरोना
जिसने भजन है शिव के सीखे उसको शिव हर जगह ही दिखे

प्रीत में शिव है शिव में प्रीती शिव सम्मुख ना चले अनीति
शिव नाम की मधुर सुगंधी जिसने मस्त कियो रे नंदी

शिव निर्मल निर्दोष निराले शिव ही अपना विरद संभाले
परम पुरुष शिव ज्ञान पुनीता भक्तो ने शिव प्रेम से जीता

दोहा :

आंठो पहर अराधीय ज्योतिर्लिंग शिव रूप
नयनं बीच बसाइये शिव का रूप अनूप

लिंग मय सारा जगत हैं लिंग धरती आकाश
लिंग चिंतन से होत हैं सब पापो का नाश
लिंग पवन का वेग हैं लिंग अग्नि की ज्योत
लिंग से पाताल हैँ लिंग वरुण का स्त्रोत
लिंग से हैं ये वनस्पति लिंग ही हैं फल-फूल
लिंग ही रत्न स्वरूप हैं लिंग माटी निर्धूप
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

लिंग ही जीवन रूप हैं लिंग मृत्युलिंगकार
लिंग मेघा घनघोर हैं लिंग ही हैं उपचार
ज्योतिर्लिंग की साधना करते हैं तीनो लोग
लिंग ही मंत्र जाप हैं लिंग का रूप श्लोक
लिंग से बने पुराण लिंग वेदो का सार
रिधिया सिद्धिया लिंग हैं लिंग करता करतार
प्रातकाल लिंग पूजिये पूरण हो सब काज
लिंग पे करो विश्वास तो लिंग रखेंगे लाज
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

सकल मनोरथ सिद्ध हो दुखो का हो अंत
ज्योतिर्लिंग के नाम से सुमिरत जो भगवंत
मानव दानव ऋषिमुनि ज्योतिर्लिंग के दास
सर्व व्यापक लिंग हैं पूरी करे हर आस
शिव रुपी इस लिंग को पूजे सब अवतार
ज्योतिर्लिंगों की दया सपने करे साकार
लिंग पे चढ़ने वैद्य का जो जन ले परसाद
उनके ह्रदय में बजे शिव करूणा का नाद
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय

महिमा ज्योतिर्लिंग की गाएँगे जो लोग
भय से मुक्ति पाएंगे रोग रहे ना शोग
शिव के चरण सरोज तू ज्योतिर्लिंग में देख
सर्व व्यापी शिव बदले भाग्य तीरे
डारीं ज्योतिर्लिंग पे गंगा जल की धार
करेंगे गंगाधर तुझे भव सिंधु से पार
चित सिद्धि हो जाए रे लिंगो का धर ध्यान
लिंग ही अमृत कलश हैं लिंग ही दया निधान
ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये
ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये
ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये
ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये
ॐ नम: शिवाये ॐ नम: शिवाये

ज्योतिर्लिंग है शिव की ज्योति ज्योतिर्लिंग है दया का मोती
ज्योतिर्लिंग है रत्नों की खान ज्योतिर्लिंग में रमा जहान

ज्योतिर्लिंग का तेज़ निराला धन संपति का देने वाला
ज्योतिर्लिंग में है नट नागर अमर गुणों का है ये सागर

ज्योतिर्लिंग की की जो सेवा ज्ञान पान का पाओगे मेवा
ज्योतिर्लिंग है पिता सामान श्रुष्टि इसकी है संतान

ज्योतिर्लिंग है इष्ट प्यारे ज्योतिर्लिंग है सखा हमारे
ज्योतिर्लिंग है नारीश्वर ज्योतिर्लिंग है सिद्ध विमलेश्वर

ज्योतिर्लिंग गोपेश्वर दाता ज्योतिर्लिंग है विधि विधाता
ज्योतिर्लिंग है शर्णेस्वर स्वामी ज्योतिर्लिंग है अंतर्यामी

सतयुग में रत्नो से शोभित देव जानो के मन को मोहित
ज्योतिर्लिंग है अत्यंत है सुंदर छत्ता इसकी ब्रह्मांड अंदर

त्रेता युग में स्वर्ण सजाता सुख सूरज ये ध्यान ध्वजाता
सक्ल सृष्टि मन की करती निसदिन पूजा भजन भी करती

द्वापर युग में पारस निर्मित गुणी ज्ञानी सुर नर सेवी
ज्योतिर्लिंग सबके मन को भाता महमारक को मार भगाता

कलयुग में पार्थिव की मूरत ज्योतिर्लिंग नंदकेश्वर सूरत
भक्ति शक्ति का वरदाता जो दाता को हंस बनता

ज्योतिर्लिंग पर पुष्प चढ़ाओ केसर चंदन तिलक लगाओ
जो जान करें दूध का अर्पण उजले हो उनके मन दर्पण

दोहा :

ज्योतिर्लिंग के जाप से तन मन निर्मल होये
इसके भक्तों का मनवा करे न विचलित कोई

सोमनाथ सुख करने वाला सोम के संकट हरने वाला
दक्ष श्राप से सोम छुड़ाया सोम है शिव की अद्भुत माया

चंद्र देव ने किया जो वंदन सोम ने काटे दुःख के बंधन
ज्योतिर्लिंग है ये सुखदायी दीन हीन का सदा-सहायी

भक्ति भाव से इसे जो ध्याये मन वाणी शीतल तर जाये
शिव की आत्मा रूप सोम है प्रभु परमात्मा रूप सोम है

यहा उपासना चंद्र ने की शिव ने उसकी चिंता हर ली
इस तिरथ की शोभा न्यारी शिव अमृत सागर भवभयहारी

चंद्र कुंड में जो भी नहाये पाप से वे जन मुक्ति पाए
क्षय कुष्ठ सब रोग मिटावे काया कुंदन पल में बनावे

मलिकार्जुन है नाम न्यारा शिव का पावन धाम प्यारा
कार्तिकेय जब शिव से थे रूठे मात-पिता के चरण न छूते

श्री शैली पर्वत जा पहुंचे कष्ट भया पार्वती के मन में
वह कुमार से चली जो मिलने संग चलना माना शंकर ने

श्री शैल पर्वत के ऊपर गए जो दोनों उमा-महेश्वर
उन्हें देखकर कार्तिक उठ भागे और कुमार पर्वत पे विराजे

जंहा श्रित हुए पार्वती शंकर धाम बना वे शिव का सुंदर
शिव का अर्जन नाम सुहाता मल्लिका है मेरी पार्वती माता

लिंग रूप हो जहाँ भी रहते मल्लिकार्जुन है उसको कहते
मनवांछित फल देने वाला निर्बल को बल देने वाला

दोहा :

ज्योतिर्लिंग के नाम की ले मन माला फेर
मनोकामना पूरी होगी लगे न चिन भी देर

उज्जैन की क्षिप्रा नदी किनारे ब्राह्मण थे शिव भक्त न्यारे
दूषण दैत्य सताता निसदिन गर्म द्वेश दिखलाता निसदिन

इक दिन नगरी के नर नारी दुखी हो राक्षस से अतिभारी
परम सिद्ध ब्राह्मण से बोले दैत्य के भय से हर कोई डोले

दुष्ट निशाचर छुटकारा पाने को यज्ञ प्यारा
ब्राह्मण तप ने रंग दिखाए पृथ्वी फाड़ महाकाल आये

राक्षस को हुंकार मारा भय भक्तों उबारा
आग्रह भक्तों ने जो कीन्हा महाकाल ने वर था दीया

ज्योतिर्लिंग हो रहूं यंहा पर इच्छा पूर्ण करूँ यंहा पर
जो कोई मन से मुझको पुकारे उसको दूंगा वैभव सारे

उज्जैनी के राजा के पास मणि थी अद्भुत बड़ी ही ख़ास
जिसे छीनने का षड़यंत्र किया था कइयो ने ही मिलकर

मणि बचाने की आशा में शत्रु विजय की अभिलाषा में
शिव मंदिर में डेरा जमाकर खो गए शिव का ध्यान लगाकर

इक बालक ने हद ही कर दी उस राजा की देखा देखी
एक साधारण सा पथ्थर लेकर पहुंचा अपनी कुटिया भीतर

शिवलिंग मान के वे पाषाण पूजने लागा शिव भगवान्
उसकी भक्ति की चुम्बक से खींचे ही आये शंभु झट से

ओमकार ओमकार की रट सुनकर हुये प्रतिष्ठित ओमकार बनकर
ओम्कारेश्वर वही है धाम बन जाए बिगड़े जहाँ पे काम

नर नारायण दो अवतार भोलेनाथ से जिन्हे था प्यार
पथ्थर का शिवलिंग बनाकर नमः शिवाय की धुन गाकर

दोहा :

शिव शंकर ओमकार का रट ले मनवा नाम
जीवन की हर राह में शिवजी लेंगे थाम

नर नारायण दो अवतार भोलेनाथ से जिन्हे था प्यार
पथ्थर का शिवलिंग बनाकर नमः शिवाय की धुन गाकर

कई वर्ष तप किया शिव का पूजा और जप किया शंकर का
शिव दर्शन को अंखिया प्यासी आ गए एक दिन शिव कैलाशी

नर नारायण से वे बोले दया के मैंने द्वार है खोले
जो हो इच्छा लो वरदान भक्त के बस में है भगवान्

करबान्धे की भक्तों ने की बिनती कर दो पवन प्रभु ये धरती
तरस रहा केदार का खंड ये बन जाये उत्तम अमरित कुंड ये

शिव ने उनकी मानी बात बन गया वेही केदानाथ
मंगलदायी धाम शिव का गूंज रहा जंहा नाम शिव का

कुम्भकरण का बेटा भीम ब्रह्मवार का हुआ बलि असीर
इंद्रदेव को उसने हराया काम रूप में गरजता आया

कैद किया था राजा सुदाक्षण करागार में करे शिव पूजन
किसी ने भीम को जा बतलाया क्रोध से भर के वो वंहा आया

पार्थिव लिंग पर मार हथोड़ा जग का पावन शिवलिंग तोडा
प्रकट हुए शिव तांडव करते लगा भागने भीम था डर के

डमरूधर ने देकर झटका धरा पे पापी दानव पटका
ऐसा रूप विक्राल बनाया पल में राक्षस मार गिराया

बन गए भोले जी प्रयलंकर भीम मार के हुए भीमशंकर
शिव की कैसी अलौकिक माया आज तलक कोई जान न पाया

हर हर हर महादेव का मंत्र पढ़ें हर दिन रे
दुःख से पीड़त मंदिरा पा जायेगा चैन

परमेश्वर ने इक दिन भक्तों जानना चाहा एक में दो को
नारी पुरुष हो प्रकटे शिवजी परमेश्वर के रूप हैं शिवजी

नाम पुरुष का हो गया शिवजी नारी बनी थी अंबा शक्ति
परमेश्वर की आज्ञा पाकर तपी बने दोनों समाधि लगाकर

शिव ने अद्भुत तेज़ दिखाया पांच कोष का नगर बनाया
ज्योतिर्मय हो गया आकाश नगरी सिद्ध हुई पुरुष के पास

शिव ने की तब सृष्टि की रचना पढ़ा उस नगरों को कशी बनना
पांच कोष के कारण तब ही इसको कहते हैं पंचकोशी

विश्वेश्वर ने उसे बसाया विश्वनाथ ये तभी कहाया
यंहा नमन जो मन से करते सिद्ध मनोरथ उनके होते

ब्रह्मगिरि पर तप गौतम लेकर पाए सिद्धियो कितने वर
ईर्षा ने कुछ ऋषि भटकाए गौतम के वैरी बन आये

द्वेष का सबने जाल बिछाया गौ हत्या का दोष लगाया
और कहा तुम प्रायश्चित्त करना स्वर्गलोक से गंगा लाना

एक करोड़ शिवलिंग लगाकर गौतम की तप ज्योत उजागर
प्रकटी शिव और शिवा वंहा पर माँगा ऋषि ने गंगा का वर

शिव से गंगा ने विनय की ऐसे यहाँ प्रभु में न रहूंगी
ज्योतिर्लिंग प्रभु आप बन जाए फिर मेरी निर्मल धरा बहाये

शिव ने मानी गंगा की विनती गंगा बानी झटपट गौतमी
त्रियंबकेश्वर है शिवजी विराजे जिनका जग में डंका बाजे

दोहा :

गंगा धर की अर्चना करे जो मन्चित लाये
शिव करुणा से उनपर आंच कभी न आये

लिरिक्सबोगी.कॉम
राक्षस राज महाबली रावण ने जब तप से किया शिव वंदन
भये प्रसन्न शम्भू प्रगटे दिया वरदान रावण पग पढ़के

ज्योतिर्लिंग लंका ले जाओ सदा ही शिव शिव जय शिव गाओ
प्रभु ने उसकी अर्चन मानी और कहा ये रहे सावधानी

रस्ते में इसको धरा पे न धरना यदि धरेगा तो फिर न उठना
ज्योतिर्लिंग रावण ने उठाया गरुड़देव ने रंग दिखाया

उसे प्रतीत हुई लघुशंका धीरज खोया उसने मन का
विष्णु ब्राह्मण रूप में आये ज्योतिर्लिंग दिया उसे थमाए

रावण निवृत हो जब आया ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर पाया
जी भर उसने जोर लगाया गया ना पर वे फिर से उठाया

लिंग गयो पाताल में धसकर आठअंगुल रहा भूमि ऊपर
हो निराश लंकेश पछताया चंद्रकूप फिर कूप बनाया

उसमे तीर्थों का जल डाला नमो शिवाय की फेरी माला
जल से किया था लिंग अभिषेका जय शिव ने भी दृश्य देखा

रत्न पूजन का उसी ने कीन्हा नटवर ने उसे वर ये दीना
पूजा तेरी मेरे मन को भावे वैधनाथ ये सदा कहाये

मनवांछित फल मिलते रहेंगे सूखे उपवन खिलते रहेंगे
गंगा जल जो कांवड़ लावे भक्तजन मेरे परम पद पावे

ऐसा अनुपम धाम है शिव का मुक्तिदाता नाम है शिव का
भक्तन की यंहा हरी बनाये बोल बम बोल बम जो न गाये

बैधनाथ भगवान् की पूजा करो धर ध्यान
सफल तुम्हारे काज हो मुश्किलें आसान

सुप्रिय द्वेष धर्म अनुरागी शिव संग जिसकी लगन थी लागी
तारुक दानव अत्याचारी देता उसको त्रास था भारी

सुप्रिय को निर्लज्पुरी लेजाकर बंद किया उसे बंदी बनाकर
लेकिन भक्ति जुक नहीं पायी जेल में पूजा रुक नहीं पायी

दारुक इक दिन फिर वंहा आया सुप्रिय भक्त को बड़ा धमकाया
फिर भी श्रद्धा हुई न विचलित लगा रहा वंदन में ही चित

भक्तन ने जब शिवजी को पुकारा वंहा सिंघासन प्रगट था न्यारा
जिस पर ज्योतिर्लिंग सजा था मष्तक अश्त्र ही पास पड़ा था

अस्त्र ने सुप्रिय जब ललकारा दारुक को एक वार में मारा
जैसा शिव का आदेश था आया जय शिवलिंग नागेश कहाया

रघुवर की लंका पे चढ़ाई ललिता ने कला दिखाई
सौ योजन का सेतु बांधा राम ने उस पर शिव आराधा

रावण मार के जब लौट आये परामर्श को ऋषि बुलाये
कहा मुनियों ने ध्यान दीजौ ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्य कीजौ

बालू का लिंग सीए बनाया जिससे रघुवर ने ये ध्याया
राम कियो जब शिव का ध्यान ब्रह्म दलन का धूल गया पाप

हर हर महादेव जय कारी भूमण्डल में गूंजे न्यारी
जंहा झरने शिव नाम के बेहते उसको सभी रामेश्वर केहते

गंगा जल से यंहा जो नहाये जीवन का वे हर सख पाए
शिव के भक्तों कभी न डोलो जय रामेश्वर जय शिव बोलो

पार्वती वल्लभ शंकरा कहे जो इक मन होये
शिव करुणा से उसका करे अनिष्ट न कोई

देवगिरि ही सुधर्मा रेहता शिव अर्चन का विधि से करता
उसकी सुदेह पत्नी प्यारी पूजती मन से थी त्रिपुरारी

कुछ कुछ फिर भी रेहती चिंतित क्योंकि थी संतान से वंचित
सुषमा उसकी बेहना छोटी प्रेम सुदेहा से बड़ा करती

उसे सुदेहा ने जो मनाया लगन सुधर्मा से करवाया
बालक सुषमा कोख से जन्मा चाँद से जिसकी होती उपमा

पहले सुदेहा अति हर्षायी ईर्ष्या फिर थी मन में समायी
कर दी उसने बात निराली हत्या बालक की कर डाली

उसी सरोवर में शव डाला सुषमा जपती जहां शिव की माला
श्रद्धा से जब ध्यान लगाया बालक जीवित हो चल आया

साक्षात् शिव दर्शन दीन्हे सिद्ध मनोरथ सारे कीन्हे
वासित होकर परमेश्वर हो गए ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर

जो चुनते शिव लगन के मोती सुख की वर्षा उन पर होती
शिव है दयालु डमरू वाले शिव है संतन के रखवाले

शिव की भक्ति है फलदायक शिव भक्तों के सदा सहायक
मन के शिवाले में शिव देखो शिव चरणन में मस्तक टेको

गणपति के शिव पिता हैं प्यारे तीन लोक से शिव हैं न्यारे
शिव चरणन का होये जो दास उसके गृह में शिव का निवास

शिव ही हैं निर्दोष निरंजन मंगलदायक भय के भंजन
श्रद्धा की मांगे बिल पत्तियां जाने सबके मन की बतियां

दोहा :

शिव अमृत का प्यार से करे जो निसदिन पान
चंद्रचूड़ शिव सदा करे उनका तो कल्याण.

Kaltaru punyaatma prem sudha shiv naam
Hitkarak sanjivani shiv chintan aviram
Patit paavan jaise madhur shiv rasna ke ghol
Bhakti ke hansa hi chuge moti ye anmol
Jaise tanik suhaga sone ko chamkaye
Shiv sumiran se aatma adbhut nikhri jaaye
Jaise chandan vriksh ko daste nahi hai naag
Shiv bhakto ke chole ko kabhi lage na daag
Om namah shivaay om namah shivaay

Daya nidhi bhuteshwar shiv hai chatur sujaan
Kan kan bhitar hai base nilkanth bhagwan
Chandchud trinetra uma pati vishwesh
Sharanagat ke ye sada kate sakal kalesh
Shiv dware prapanch ka chal nahi sakta khel
Aag aur paani ka jaise hota nahi hai mel
Bhay bhanjan natraj hai damruwale nath
Shiv ka vandan jo kare shiv hai unke saath
Om namah shivaay om namah shivaay

Lakho ashwmegh ho so ganga snan
Unse uttam hai kahi shiv charno ka dhyan
Alakh niranjan naad se upje aatm gyan
Bhatke ko rasta mile mushkil ho asaan
Amar guno ki khaan hai chit shuddhi shiv jaap
Sat sangat mein baith ke karlo pachyataap
Lingeshwar ke manan se sidhh ho jaate kaaj
Namah shivaay rat-ta jaa shiv rakhenge laaz
Om namah shivaay om namah shivaay

Shiv charno ko chune se tan man paavan hoye
Shiv ke roop anup ki samta kare na koi
Mahabali mahadev hai mahaprabhu mahakaal
Asurnikandan bhakt ki peeda hare tatkaal
Sarv vyapi shiv bhola dharm roop sukh kaaj
Amar ananta bhagvanta jag ke paalan har
Shiv karta sansar ke shiv srishti ke mul
Rom rom shiv ramne do shiv na jaio bhul
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay

Shivamrit ki paavan dhara dho deti har kasht hamara
Shiv ka path sada sukhdai shiv ke bin hai kaun sahayi

Shiv ki nisdin ki jo bhakti denge shiv har bhay se mukti
Mathe dharo dhiv naam ki dhuli tut jayegi yam ki sooli

Shiv ka sadhak dukh na mane shiv ko harpal sammukh jaane
Saup di jisne shiv ko dor lute na usko pancho chor

Shiv saagar mein jo jan doobe sankat se woh hans ke juje
Shiv hai jinke sangisathi unhe vipda kabhi sataati

Shiv bhaktan ka pakde haath shiv santan ke sada hi saath
Shiv ne hai brahmand rachaya teen lok hai shiv ki maaya

Jin pe shiv ki karuna hoti woh kankad ban jaate moti
Shiv sang taar prem ke jodo shiv ke charan kabhi na chhodo

Shiv mein manva man ko rang le shiv mastak ki rekha badle
Shiv har jan ki nas nas jaane bura bhala ve sab pahchane

Ajar amar hai shiv avinashi shiv pujan se kate chaurasi
Yahan wahan shiv sarv vyapak shiv ki daya ke baniye yachak

Shiv ko dijo sachhi nishtha hone na dena shiv ko rushta
Shiv hai shraddha ke hi bhookhe bhog lage chahe rukhe sukhe

Bhavna shiv ko bas mein karti preet se hi to preet hai badhti
Shiv kahte hai man se jaago prem karo abhimaan tyago

Doha :

Duniya ka moh tyaag ke shiv mein rahiye leen
Sukh dukh hani-labh to shiv ke hi hai aadhin

Bhashm ramaiya parvati vallabh shiv phaldayak shiv hai durlabh
Maha kautuki hai shiv shankar trishul dhari shiv abhayankar

Shiv ki rachna dharti ambar devo ke swami shiv hai digambar
Kaal ka dahan shiv rundan poshit hone na dete dharm ko dushit

Durgapati shiv girijanath dete hai sukho ki prabhaat
Srustikarta tripurdhari shiv ki mahima kahi na jaati

Divya tez ke ravi hai shankar pooje ham sab tabhi hai shankar
Shiv sam aur koi na daani shiv ki bhakti hai kalyaani

Kehte munivar guni sthani shiv ki baate shiv hi jaane
Bhakton ka hai shiv priya halaahal neki ka ras baantate harpal

Sabke manorath siddh kar dete sabki chinta shiv har lete
Bam bhole avdhoot swaroopa shiv darshan hai ati anupa

Anukampa ka shiv hai zarna harne wale sabki trushna
Bhooto ke adhipati hai shankar nirmal man shubh mati hai shankar

Kaam ke shatru vish ke nashak shiv mahayogi bhay vinashak
Rudra roop shiv mahatezsvi shiv ke jaisa kaun tapasvi

Himgiri parvat shiv ka dera shiv sammukh na tike andhera
Laakho sooraj ki shiv jyoti shastron mein shiv upmaan hoti

Shiv hai jag ke sirjan hare bandhu sakha shiv isht hamare
Gau brahman ke ve hitkari koi na shiv saa par upkari

Doha :

Shiv karuna ke strot hai shiv se kariyo preet
Shiv hi param punit hai shiv sache man meet

Shiv sarpo ke bhushandhari paap ke bhakshan shiv tripurari
Jatajut shiv chandrashekhar vishv ke rakshak kala kaleshvar

Shiv ki vandana karnewale dhan vaibhav paa jaaye nirala
Kasth nivarak shiv ki pooja shiv sa dayalu aur na dooja

Panchmukhi jab roop dikhave danav dal mein bhay chha jaave
Dam dam damroo jab bhi bole chor nishachar ka man dole

Ghot ghat jab bhang chadhave kya hai leela samjh na aave
Shiv hai yogi shiv sanyasi shiv hi hai kailaash ke vasi

Shiv ka das sada nirbhik shiv ke dhaam bade ramnik
Shiv bhrukuti se bhairav janme shiv ki murat rakho man mein

Shiv ka archan mangalkari mukti sadhan bhav bhayhari
Bhakt vatsal din dayala gyan sudha hai shiv kripala

Shiv naam ki nauka hai nyari jisne sabki chinta taari
Jeevan sindhu sahej jo tarna shiv ka harpal naam sumirna

Tarkasur ko marnewale shiv hai bhakto ke rakhwale
Shiv ki leela ke gun gaan shiv ko bhul ke na bisrana

Andhkasur se dev bachaye shiv ne adbhut khel dikhaye
Shiv charno se lipte rahiye mukh se shiv shiv jai shiv kahiye

Bhasmasur ko var de dala shiv hai kaisa bhola bhala
Shiv tirtho ka darshan kijo man chahe var shiv se leejo

Doha :

Shiv shankar ke jaap se mit jaate sab rog
Shiv ka anugrah hote hi peeda na dete shog

Brahma vishnu shiv anugaami va hai din hin ke swami
Nirbal ke balroop hai shambhu pyase ko jalroop hai shambhu

Raavan shiv ka bhakt nirala shiv ko di das shish ki mala
Garv se jab kailaash uthaya shiv ne anguthe se tha dabaya

Dukh nivaran naam hai shiv ka ratn hai wo bin daam shiv ka
Shiv hai sabke bhagyavidhata shiv ka sumiran hai phaldata

Shiv dadhichi ke bhagvanta shiv ki tari amar ananta
Shiv ka sevadar sudarshan saanse kar di shiv ko arpan

Mahadev shiv audhadaani baaye ang mein saje bhawani
Shiv shakti ka mel nirala shiv ka har ek khel nirala

Shambhar naami bhakt ko tara chandrasen ka shok nivaara
Pingla ne jab shiv ko dhyaya deh chuta aur moksh paaya

Gokarn ki chan chuka anari bhav saagar se paar utaari
Ansuiya ne kiya aaradhan tute chinta ke sab bandhan

Bel-paato se pooja kare chandali shiv ki anukampa huyi nirali
Markandey ki bhakti hai shiv durvasha ki shakti hai shiv

Ram prabhu ne shiv aaradha setu ki har tal gayi badha
Dhanushbaan tha paya shiv se bal ka saagar tab aaya shiv se

Shri krishna ne jab tha dhyaya dash putro ka var tha paaya
Humsevak to swami shiv hai anhad antaryami shiv hai

Doah :

Dindayalu shiv mere shiv ke rahiyo daas
Ghat ghat ki shiv jaante shiv par rakh vishwas

Parshuram ne shiv gun gaaya kinha tap aur farsa paya
Nirgun bhi shiv shiv nirakaar shiv hai srushti ke aadhar

Shiv hi hote murtiman shiv hi karte jag kalyaan
Shiv mein vyapak duniya saari shiv ki shiddhi hai bhayhari

Shiv hai bahar shiv hi andar shiv ki rachna saat samandar
Shiv hai har ik ke man ke bhitar shiv hai har ek kan kan ke bhitar

Tan mein baitha shiv hi bole dil ki dhadkan mein shiv dole
Hum kathputli shiv hi nachata nayano ko par nazar na aata

Maati ke rangdar khilaune saanvle sundar aur silone
Shiv ho jode shiv ho tode shiv to kisi ko khula na chhode

Aatma shiv parmatma shiv hai dayabhav dharmatma shiv hai
Shiv hi deepak shiv hi baati shiv jo nahi to sab kuch maati

Sab devo mein jyesth shiv hai sakal guno mein shresth shiv hai
Jab ye taandav karne lagta brahmand sara darne lagta

Tisara chakshu jab jab khole trahi trahi ye jag bole
Shiv ko tum prashanna hi rakhna aastha aur lagn banaye rakhna

Vishnu ne ki shiv ki pooja kamal chadhau man mein sujha
Ek kamal jo kam tha paya apna sundar nayan chadhaya

Sakshat tab shiv they aaye kamal nayan vishnu kehlaye
Indradhanush ke rango mein shiv sant ke satsango mein shiv

Doha :

Mahakaal ke bhakt ko maar na sakta kaal
Dwar khade yamraj ko shiv hai dete taal

Yagya sudan maha raudra shiv hai aanad murti natwar shiv hai
Shiv hi hai shmashan nivaasi shiv katen mrutyulok ki fansi

Vyadh charam kamar mein sohe shiv bhakton ke man ko mohe
Nandi ghan par kare savari aadinath shiv gangadhari

Kaal ke bhi to kaal hai shankar vishdhari jagpaal hai shankar
Mahasati ke pati hai shankar dinsakha shubh mati hai shankar

Laakho shashi ke sammukhwale bhang dhature ke matwale
Kaal bhairav bhuto ke swami shiv se kampe sab phalgaami

Shiv hai kapaali shiv bhashmangi shiv ki daya har jiv ne mangi
Mangalkarta mangalhari dev shiromani mahasukhkari

Jal tatha bilv kare jo arpan shraddha bhaav se kare samrpan
Shiv sada unk karte raksha satykarm ki dete shiksha

Ling par chandan lep jo karte unke shiv bhandar hai bharte
Chosath yogni shiv ke bas mein shiv hai nahate bhakti ras mein

Vasuki naag kanth ki shobha aasutosh hai shiv mahadeva
Vishvmurti karunanidhan maha mrutyunjay shiv bhagwan

Shiv dhare rudraksh ki mala nileshwar shiv damroo wala
Paap ka shodhak mukti saadhan shiv karte nirdayi ka mardan

Doha :

Shiv sumiran ke neer se dhul jaate hai paap
Pavan chale shiv naam ki ude re dukh santaap

Panchakshar ka mantra shiv hai sakshat sarveshwar shiv hai
Shiv ko naman kare jag-sara shiv ka hai ye sakal pasaara

Kshir saagar ko mathnewale riddhi siddhi sukh denewale
Ahankar ke shiv hai vinashak dharm deep jyoti prakashak

Shiv bichhuvan ke kundaldhari shiv ki maya srishti saari
Mahananda ne kiya shiv chintan rudraksh mala kinhi dhaaran

Bhavsindhu se shiv ne taara shiv anukampa aparampara
Tri-jagat ke yash hai shivji divya tez gaurish hai shivji

Mahabhar ko sahnewale vair rahit daya karne wale
Gun swaroopa hai shiv anupa ambanath hai shiv taprupa

Shiv chandish param sukh jyoti shiv karuna ke ujjwal moti
Punyatma shiv yogeshwar hai mahadayalu shiv sharneswar

Shiv charanan pe mastak dhariya shraddha bhav se archan kariye
Man ko shivala roop bana lo rom rom mein shiv ko rama lo

Mathe jo bhakt dhooli dharenge dhan aur dhan ke kosh bharenge
Shiv ka baak bhi banna jaave shiv ka daas param pad paave

Dasho dishao mein shiv drishti sab par shiv ki krupa drishti
Shiv ko sada hi sammukh jaano kan kan beech base hi maano

Shiv ko saupo jeevan naiya shiv hai sankat taal khevaiya
Anjali baandh kare jo vandan bhay janjaal ke tute bandhan

Doha :

Jinki raksha shiv kare mare na usko koy
Aag ki nadiya se bache baal naa banka hoy

Shiv data bhola bhandari shiv kailashi kala bihaari
Sagun brahm kalyaan karta vighn vinashak baadha harta

Shiv swaroopini srushti sari shiv se pruthvi hai ujiyari
Gagandeep bhi maya shiv ki kamdhenu hai chhaya shiv ki

Ganga mein shiv shiv mein ganga shiv ke taare turat kusanga
Shiv ke kar mein sajhe trishula shiv ke bina ye jag nirmula

Svarnmayi shiv jata niraali shiv shambhu ki chhata niraali
Jo jan shiv ki mahima gaaye shiv se phal manvanchhit paaye

Shiv pag pankaj swarg samaan shiv paaye jo tyaje abhimaana
Shiv ka bhakt na dukh mein dole shiv ka jaadu sir chad bole

Parmanand anant swaroopa shiv ki sharan pade sab kupa
Shiv ki japiyo har par maala shiv ki nazar mein teeno kaala

Antar ghat mein ise basa lo divya jyot se jyot mila lo
Namah shivay jape jo swasa puri ho har man ki aasaa

Doha :

Parampita parmatma purn sachchidanand
Shiv ke darshan se mile sukhdayak aanad

Shiv se bemukh kabhi na hona shiv sumiran ke moti pirona
Jisne bhajan hai shiv ke sikhe usko shiv har jagah hi dikhe

Preet mein shiv hai shiv mein preeti shiv sammukh na chale aneeti
Shiv naam ki madhur sugandhi jisne mast kiyo re nandi

Shiv nirmal nirdosh niraale shiv hi apna virad sambhale
Param purush shiv gyan puneeta bhakto ne prem se jeeta

Doha :

Aantho pahar aradhiye jyotirling shiv roop
Naynan beech basaiye shiv ka roop anup

Ling may sara jagat hai ling dharti aakash
Ling chintan se hote hai sab paapo ka nash
Ling pavan ka veg hai ling agni ki jyot
Ling se paatal hai ling varun ka strot
Ling se hai ye vansapati ling hi hai phal-phool
Ling hi ratn swaroop hai ling maati nirdhoop
Om namah shivaay om namah shivaay

Ling hi jeevan roop hai ling mrutyulingkar
Ling megha ghanghor hai ling hi hai upchar
Jyotirling ki saadhna karte hai teeno log
Ling hi mantra jaap hai ling ka roop shlok
Ling se bane puraan ling vedo ka saar
Riddhiya siddhiya ling hai ling karta kartaar
Praatkal ling pujiye puran ho sab kaaj
Ling pe karo vishvas to ling rakhenge laaz
Om namah shivaay om namah shivaay

Sakal manorath siddh ho dukho ka ho anat
Jyotirling ke naam se sumirat jo bhagwant
Maanav daanav rishimuni jyotirling ke das
Sarv vyapak ling hai puri kare har aas
Shiv roopi is ling ko pooje sab avtaar
Jyotirlingo ki daya sapne kare saakar
Ling pe chadhne vaidya ka jo jan le parsaad
Unke hriday me baje shiv karuna ka naad
Om namah shivaay om namah shivaay

Mahima jyotirling ki gaenge jo log
Bhay se mukti paenge rog rahe naa shog
Shiv ke charan saroj tu jyotirling mein dekh
Sarv vyapi shiv badle bhagy teere
Daari jyotirling pe ganga jal ki dhaar
Karenge gangadhar tujhe bhav sindhu se paar
Chit shruddhi ho jaaye re lingo ka dhar dhyan
Ling hi amrut kalash hai ling hi daya nidhan
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay
Om namah shivaay om namah shivaay

Jyotirling hai shiv ki jyoti jyotirling hai daya ka moti
Jyotirling hai ratno ki khaan jyotirling mein ramaa jahan

Jyotirling ka tez nirala dhan sampati ka dene wala
Jyotirling mein hai nat nagar amar guno ka hai ye saagar

Jyotirling ki kiye jo seva gyna dhyan ka paoge meva
Jyotirling hai pita samaan srishti iski hai santaan

Hai isht pyare jyotirling hai sakha hamare
Jyotirling hai narishwar jyotirling hai siddh vimleshwar

Jyotirling gopeshwar data jyotirling hai vidhi vidhata
Jyotirling hai sharneswar swami jyotirling hai antaryami

Satyugo mein ratno se shobhit dev jano ke man ko mohit
Jyotirling hai atyant hi sundar chhattaa iski brahamnd andar

Treta yug mein svarn sajata sukh sooraj ye dhyan dvajata
Sakal srusti man ki karti nisdin pooja bhajan bhi karti

Dwapar yug mein paras nirmit guni gyani sur nar sevi
Jyotirling sabke man ko bhata mahamarak ko mar bhagata

Kalyug mein parthiv ki murat jyotirling nandkeshwar surat
Bhakti shakti ka vardata jo data ko hans banata

Jyotirling par pushp chadaho keshar chandan tilak lagao
Jo jan dudh karenge arpan ujle ho unke man darpan

Doha :

Jyotirling ke jaap se tan man nirmal hoye
Iske bhakto ka manva kare na vichlit koi

Somnath sukh karnewala som ke sankat harnewala
Daksh shrap se som chudaya som hai shiv ki addbhut maya

Chandra dev ne kiya jo vandan som ne kate dukh ke bandhan
Jyotirling hai ye sukhdayi din hin ka sada sahaayi

Bhakti bhav se ise jo dhyaye man vaani shital tar jaaye
Shiv ki aatma roop som hai prabhu parmatma roop som hai

Yahan upasna chandra ne ki shiv ne uski chinta harli
Is tirath ki shobha nyari shiv amrit saagar bhavbhayhari

Chandra kund mein jo bhi nahaye paap se ve jan mukti paye
Kshay kushth sab rog mitave kaya kundan pal mein banave

Mallikarjun hai naam nyara shiv ka paavan dham pyara
Kartikey jab shiv se they roothe mata pita ke charan na chute

Shri shaili parvat jaa pahunche kasht bhaya parvati ke man mein
Vah kumar ke chali jo milne sang chale na mana shankar ne

Shri shaili parvat upar gae jo dono umamaheswar
Unhen dekhkar kartik uth bhage aur kumar parvat pe biraje

Jahan shrit huye parvati shankar dham bana ve shiv ka sundar
Shiv ka arjun naam suhata mallika hai meri parvati maata

Ling roop hao jahan bhi rahte mallikarjun hai usko kehte
Manvanchhit phal denewala nirbal ko bal dene wala

Doha :

Jyotirling ke naam ki le man maala pher
Manokamna puran hogi lage na chin bhi der

Ujjain ki kshripa nadi kinare brahman they shiv bhakt nyare
Dushan daity satata nisdin garm dwesh dikhlata nisdin

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Ik din nagri ke nar-nari dukhi ho rakshas se atibhari
Param siddh brahman se bole daity ke bhay se har koi dole

Dusht nishachar chutkara paane ko yagya pyara
Brahman tap ne rang dikhaya pruthvi phaad mahakaal aaye

Rakshas ko hukaar mara bhay bhakton ubara
Aagrah bhakton ne jo kinha mahakaal ne var tha diya

Jyotirling ho rahu yahan par ichha purn karun yahan par
Jo koi man se mujhe pukare usko dunga vaibhab sare

Ujjaini ke raja ke paas mani thi addbhut badi hi khash
Jise chhinne ka shadyantra kiya tha kaiyo ne hi milkar

Mani bachane ki asha mein shatru vijay ki abhilasha mein
Shiv mandir mein dera jamakar kho gaye shiv ka dhyan lagakar

Ik baalak ne had hi kar di us raja ki dekha dekhi
Ek sadharan paththar lekar pahucha apni kutiya bhitar

Shivling maan ke ve paashan poojne laga shiv bhagwan
Uski bhakti ki chumbak se khiche hi aye shambhu jat se

Omkar omkar ki rat sunkar huye pratishit omkar bankar
Omkareshwar wahi hai dham ban jaaye bigade jahan pe kaam

Nar narayan do avtaar bholenath se jinhe tha pyar
Paththar ka shivling banakar namah shivaay ki dhun gakar

Doha :

Shiv shankar omkar ka rat le manva naam
Jeevan ki har raah mein shivji lenge thaam

Nar narayan do avtaar bholenath se jinhe tha pyar
Paththar ka shivling banakar om namah shivaay ki dhun gakar

Kai varsh tap kiya shiv ka pooja aur jap kiya shankar ka
Shiv darshan ko akhiya pyasi aa gaye ek din shiv kailaashi

Nar narayan se ve bole daya ke maine dwar hai khole
Jo ho ichha lo vardan bhakt ke bas mein hai bhagwan

Karbandhe ki bhakti ne ki binati kar do pavan prabhu ye dharti
Taras raha kedar ka khand ye ban jaye uttam amrit kund ye

Shiv ne unki maani baat ban gaya vehi kedarnath
Mangaldayi dham shiv ka gunj raha jahan naam shiv ka

Kumbhkaran ka beta bheem brahmvar ka hua bali asir
Indradev ko usne haraya kam roop mein garjta aaya

Qaid kiya tha raja sudakshan karagar mein kare shiv poojan
Kisi ne bheem jo jaa batlaya krodh se bhar ke wo wahan aaya

Parthiv ling par mara hathoda jag ka paavan shivling toda
Prakat huye shiv tandav karte laga bhagne bheem tha dar ke

Damrudhar ne dekar jhatka dhar pe paani danav patka
Aisa roop vikral banaya pal mein rakshas maar giraya

Ban gaye bholeji pralaynkar bheem mar ke huye bhimshankar
Shiv ki kaisi alaukik maya aaj talak koi na jaan na paya

Har har har mahadev ka mantra padhe har din re
Dukha se peedit mandira paa jayega chain

Parmeshwar ne ik din bhakto janna chaha ek mein do ko
Nari purush ko prakte shivji parmeshwar ke roop hai shivji

Naam purush ka ho gaya shivji nari bani thi amba shakti
Parmeshwar ki aagya pakar tabhii bane dono samadhi lagakar

Shiv ne addbhut tez dikhaya paanch kosh ka nagar basaya
Jyotirmay ho gaya aakash nagri siddh huyi purush ke paas

Shiv ne ki tab srushti ki rachna pada us nagar ko kashi banna
Paanch kosh ke karan tab hi isko kahte hai panchkoshi

Vishweshwara ne ise basaya vishwanath ye tabhi kahaya
Yahan naman jo man se karte siddh manorath unke hote

Brahmgiri par tap gautam lekar paae siddhiyo ke kitane var
Irsha ne kuch rishi bhatkaye gautam ke vairi ban aaye

Dwesh ka sab ne jhal bichhaya gau hatya ka ilzaam lagaya
Aur kaha tum prayashchchit karna swarg lok se ganga lana

Ek karod shivling sajakar gautam ki tap jyot ujagar
Prakat shiv aur shiva wahan par manga rishi ne ganga ka var

Shiv se ganga ne vinay ki aise prabhu main yahan na rahungi
Jyotirling prabhu aap ban jaaye phir meri nirmal dhara bahaye

Shiv ne maani ganga ki binti ganga jhatpat bani gautami
Trimbakeshwar hai shivji viraje jinka jag mein danka baje

Doha :

Ganga dhar ki archna kare ko manchhit laye
Shiv karuna se unpar aanch kabhi na aaye

Rakshas raj mahabali raavan ne jab kiya shiv tap se vandan
Bhaye prasanna shambu pragte diya vardan raavan pag padhke

Jyotirling lanka le jaao sada hi shiv shiv jai shiv gaao
Prabhu ne uski archan mani aur kahan rahe savdhani

Raste mein isko dhara pe na dharna yadi dharega to phir na uthna
Jyotirling raavan ne uthaya garuddev ne rang dikhaya

Use pratit huyi laghushanka dhiraj khoya usne man ka
Vishnu brahman roop mein aye jyotirling diya use thamaye

Raavan nibhyat ho jab aaya jyotirling pruthvi par paya
Ji bhar usne jor lagaya gaya na par ve phir se uthaya

Ling gayo paatal mein ghaskar athangul raha bhoomi upar
Ho nirash lankesh pachhtaya chandrakup phir kup banaya

Usmein tirtho ka jal dala namo shivaay ki pheri mala
Jal se kiya tha ling abhishek jai shiv ne bhi drashy dekha

Pratham poojan tha usi ne kinha natwar ne use var ye dinha
Pooja tari meri man ko bhave vaidhnath ye sada kahaye

Manvanchhit phal milte rahenge sukhe upvan khilte rahenge
Ganga jal jo kanvad lave bhaktjan mere param pad pave

Aisa anupan dham hai shiv ka muktidata naam hai shiv ka
Bhaktan ki yahan hari banaye bole bam bole bam jo na gaye

Doha :

Vaidhnath bhagwan ki pooja kare dhar dhyaye
Safal tumhare kaaj ho mushkile aasaan

Supriya vaibhav prem anuragi shiv sang jiski lagi thi
Taad pratad daruk atyachari deta usko pyas ka mari

Supriya ko nirlajpuri lejakar band kiya use bandi banakar
Lekin bhakti chhut na paayi jel mein pooja ruk nahi paayi

Daaruk ek din phir wahan aaya supriya bhkat ko bada dhamkaya
Phir bhi shraddha huyi na vichalit laga raha vandan mein hi chit

Bhaktan ne jab shivji ko pukaara wahan sighasan pragat tha nyara
Jis par jyotirling saha tha mashtak ashtra hi paas pada tha

Astra ne supriya jab lalkara daaruk ko ek var mein mara
Jaisa shiv ka aadesh tha aaya jay shivling nagesh kahaya

Raghuvar ki lanka pe chadhai laleeta ne kala dikhai
Sau yojan ka setu bandha ram ne us par shiv aaradha

Raavan mar ke jab laut aaye paramrsh ko rishi bulaye
Kaha muniyo ne dhayan dijau prabhu hatya ka prayshchchit kijau

Baalu kali ne sie banaya jisse raghuvar ne ye dhyara
Ram kiyo jab shiv ka dhyan brahm dalan ka dhul gaya paap

Har har mahadev jai kari bhumandal mein gunje nyari
Jahan zarne shiv naam ki behte usko sabhi rameswar kahte

Ganga jal se yahan jo nahaye jeevan ka wo har sukh paye
Shiv ke bhakto kabhi na dolo jai rameshwar jai shiv bolo

Doha :

Paarvati vallabh shankar kahe jo ek man hoye
Shiv karuna se uska kare na anisht koi

Devgiri hi sudharm rahta shiv archan ka vidhi karta
Uski sudeha patni pyari poojati man se tirth purari

Kuch kuch phir bhi rahti chintit kyunki thi santan se vanchit
Sushma uski behna thi chhoti prem sedeha se bada karti

Use sudeha ne jo manaya lagan sudharm se karvaya
Baalak sushma kokh se janma chand se uski hoti upma

Pahle sudeha ati harshayi irsha phir thi man mein samayi
Kar di usne baat nirali hatya baalak ki kar dali

Usi sarovar mein shav ko dala shushma jape jahan shiv ki mala
Shraddha se jab dhyan lagaya baalak jivit ho chal aaya

Sakshat shiv darshan dinhe siddh manorath sare kinhe
Vaasit ho kar parmeshwar ho gaye jyotirling ghushmeshwar

Jo chunte shiv lagan ke moti sukh ki varsha un par hoti
Shiv hai dayalu damruwale shiv hai santan ke rakhwale

Shiv ki bhakti hai phaldayak shiv bhakto ke sada sahayak
Man ke shivale mein shiv dekho shiv charnan mein mastak teko

Ganpati ke shiv pita hai pyare teeno lok se shiv hai nyare
Shiv charnan ka hoye jo das uske grah mein shiv ka nivaas

Shiv hi hai nirdhosh niranjan mangaldayak bhay ke bhanjan
Shraddha ke mange bil pattiyan jaane sabke man ki battiyan

Doha :

Shiv amrit ka pyar se kare jo nisdin paan
Chandrachud shiv sada kare unka to kalyaan.

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