Rudrashtakam Lyrics – Agam Aggarwal
Vibhum vyapakam brahma-veda-svaroopam
Nijam nirgunam nirvikalpam niriham
Chidakasha makasha-vasam bhaje ham
Nirakara monkara-moolam turiyam
Gira gnana gotita misham girisham
Karalam maha-kala-kalam krpalam
Gunagara samsara param nato ham
Tusha radri-sankasha-gauram gabhiram
Manobhuta-koti prabha sri sariram
Sphuran mauli-kallolini-charu-ganga
Lasad-bhala-balendu kanthe bhujanga
Chalatkundalam bhru sunetram visalam
Prasanna-nanam nila-kantham dayalam
Mrgadhisa charmambaram mundamalam
Priyam sankaram sarvanatham bhajami
Pracandam prakrstam pragalbham paresham
Akhandam ajam bhanukoti-prakasam
Trayah-shula-nirmulanam shula-panim
Bhaje ham bhavani-patim bhava-gamyam
Kalatitata-kalyana-kalpanta-kari
Sada sajjana-nanda-data purarih
Chidananda-sandoha-mohapahari
Prasida praslda prabho manmatharih
Na yavad umanatha-padaravindam
Bhajantiha loke pareva naranam
Na tavat-sukham shanti-santapa-nasham
Praslda prabho sarva bhuta-dhivasam
Na janami yogam japam naiva pujam
Nato ham sada sarvada sambhu tubhyam
Jara janma-duhkhaugha tatapya manam
Prabho pahi apan-namamisha shambho
Rudrakastakkomidam prokatam vipren hartoshaye
Ye pathanti nara bhaktya tesham shambhu prasidati
Eeti shrigoswamitulsidaskrutam shrirudrakastham sammpurnam.
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम्
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति
इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम्.